विदाई एक बेहद संवेदनशील क्षण है। शायद मिलन के क्षण से भी ज्यादा। जिस तरह हम जिसे चाहते हैं उसके साथ पहली मुलाकात हमेशा याद रहती है। उसी तरह पहली विदाई भी हमेशा-हमेशा के लिए दिलोदिमाग में तस्वीर बनकर सुरक्षित रहती है।
विदाई शब्द सुनते ही ऐसा लगता है कि एक बेटी शादी के बाद अपनी नई जिंदगी में कदम रखने के लिए बाबुल के घर से विदा हो रही है। यह क्षण बेटी के लिए और उसके परिवार के लिए खासतौर से उसके पिता के लिए बेहद भावुक होता है।
वैसे विदाई का क्षण अनंत संवेदनाओं वाला क्षण है। इस क्षण को कुछ निश्चित अभिव्यक्तियों में नहीं बाँधा जा सकता। न ही ऐसा कुछ किए जाने की कोशिश होनी चाहिए। हर एक के पास विदाई के लिए अपनी संवेदना, कल्पना और अभिव्यक्ति होनी चाहिए
जरूरी नहीं है कि विदाई के समय अलंकारों से लदी-फदी भाषा का ही इस्तेमाल किया जाए या कि अनावश्यक रूप से वाचाल बनने की कोशिश की जाए। सीधी सपाट भाषा और कम शब्दों में भी विदाई यादगार हो सकती है।
विदाई में बोले गए शब्दों से ज्यादा चेहरे के भाव महत्वपूर्ण होते हैं। आपके चेहरे से लगना चाहिए कि आप जो कुछ कह रहे हैं, वह दिल से कह रहे हैं। इस बात को कभी न भूलें कि चेहरा तब भी झूठ नहीं बोलता, जब आपके होंठ झूठ बोल रहे होते हैं। रोहित कुमार !!
विदाई शब्द सुनते ही ऐसा लगता है कि एक बेटी शादी के बाद अपनी नई जिंदगी में कदम रखने के लिए बाबुल के घर से विदा हो रही है। यह क्षण बेटी के लिए और उसके परिवार के लिए खासतौर से उसके पिता के लिए बेहद भावुक होता है।
वैसे विदाई का क्षण अनंत संवेदनाओं वाला क्षण है। इस क्षण को कुछ निश्चित अभिव्यक्तियों में नहीं बाँधा जा सकता। न ही ऐसा कुछ किए जाने की कोशिश होनी चाहिए। हर एक के पास विदाई के लिए अपनी संवेदना, कल्पना और अभिव्यक्ति होनी चाहिए
जरूरी नहीं है कि विदाई के समय अलंकारों से लदी-फदी भाषा का ही इस्तेमाल किया जाए या कि अनावश्यक रूप से वाचाल बनने की कोशिश की जाए। सीधी सपाट भाषा और कम शब्दों में भी विदाई यादगार हो सकती है।
विदाई में बोले गए शब्दों से ज्यादा चेहरे के भाव महत्वपूर्ण होते हैं। आपके चेहरे से लगना चाहिए कि आप जो कुछ कह रहे हैं, वह दिल से कह रहे हैं। इस बात को कभी न भूलें कि चेहरा तब भी झूठ नहीं बोलता, जब आपके होंठ झूठ बोल रहे होते हैं। रोहित कुमार !!