जब तुम्हीं अनजान बनकर रह गए
विश्व की पहचान लेकर क्या करूँ ?
जब ना तुमसे स्नेह के दो कण मिले
व्यथा कहने के लिए दो क्षण मिले!
जब तुम्ही ने की सतत अवहेलना,
विश्व का सम्मान लेकर क्या करूँ ?
एक आशा, एक ही अरमान था,
बस तुम्ही पर हृदय को अभिमान था!
पर ना जब तुम ही हमें अपना सके,
व्यर्थ यह अभिमान लेकर लेकर क्या करूँ ?
दूं तुम्हें कैसे जलन अपनी दिखा ?
दूं तुम्हें कैसे लगन अपनी दिखा!
जो स्वरित होकर न कुछ भी कह सकें,
मैं भला वे गान लेकर क्या करूँ ?
जब तुम्हीं अनजान बनकर रह गए
विश्व की पहचान लेकर क्या करूँ ?,,रोहित कुमार की कलम से