दिल के टूटने पर भी हंसना
शायद ' जिंदादिली ' इसी को कहते हैं।
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ठोकर लगने पर भी मंजिल तक भटकना
शायद ' तलाश ' इसी को कहते हैं।
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किसी को चाहकर भी न पाना
शायद ' चाहत' इसी को कहते हैं।
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टूटे खंडहर में बिना तेल के दिया जलाना
शायद ' उम्मीद ' इसी को कहते हैं।
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गिर जाने पर फिर से खड़ा होना
शायद ' हिम्मत ' इसी को कहते हैं।
ये हिम्मत , उम्मीद , चाहत , तलाश... शायद
' जिंदगी ' इसी को कहते हैं रोहित कुमार की कलम से |