शनिवार, 5 सितंबर 2015

मन का पंछी आज उदास है।।


न जाने क्यों मन का पंछी उदास है,
बचपन का लाड़ दुलार याद आ रहे हैं
बैठा है सिर झुकाये रूठे बच्चे  की तरह,
अन्य अंगो की भी मानो हड़ताल है,
मन का पंछी आज उदास है।

अपने वचपन के विछौने से दादी की याद सता रही है,
दादी की ममता मानो आवाज देदे बुला रही है,
हर सांस के बाद छूट रही है साथ जिन्दगी की,  
मन का पंछी आज उदास है।

ये मेरे अपने मुझे इतना क्यों याद आते हैं,
यादों के बादल में दिलो दिमाग पर छा जाते हैं,
वचपन के यादो के प्रहार से दिल के टुकड़े-2 हो जाती है,
किरचें उठाते-उठाते मेरे नयन भीग जाते हैं,
रोते नयनों में मिलन की आस है,

मन का पंछी आज उदास है।।