“ पाबंदी "
किसी की आज़ादी को खत्म करना..
किसी की सोच को पिंजरे में कैद करना..
किसी की खुशी को हमेशा पूरा न होने देना...
उसका जीवन ही जेल जैसा बना देना..
जहां पर शारीरिक जरूरतें तो अवश्य पूरी होंगी..
पर मन हमेशा बंधा हुआ होगा..हम सब ऐसे ही तो हैं...
जरा गौर से सोचियेगा.
अपने जीवन के पन्ने ध्यान से पलटियेगा.
सबका नहीं पर बहुतों का जीवन ऐसा ही होगा..
क्योंकि हमारे जीवन भी जेलें हैं...
जैसे रीति-रिवाज की बेड़ियां, परम्पराओं की जेल है..
हमारी सोच उनसे आगे नहीं निकल पाती..
हमारी समझने की सीमा बस वहीं तक निश्चित है...
तो ये पाबंदियां ही तो हैं==== रोहित कुमार !!