मै ढूंढता हूं खुद अपना वजूद,बनाता हूं भावनाओं की लकीरे,
उकेरता हू कई चित्र उम्मीदों के,
मिटाता हूं अपनी उदासियों को,
खींचता हूं आड़ी तिरछी लकीरें,
बुनता हूं एहसास के ताने बाने,
पर जाने कैसे बनते जाते हैं,
"शब्द"
और शब्द जाने कब बन जाते है "कविता".रोहित कुमार