समंदर ने जाल फैलाया है मछलियाँ जाये कहाँ।
फूल साजिशो मे है घर तितलियां बनाएं कहा॥
अपना आशिया तो कबका जल चुके है।
आसमां सोच मे है कि वो बिजलियां गिराएं कहां॥
शिकारी को पहरेदारी मिली है बाहर की।
प्यासे भंवरोँ को मिलने के लिए कलियां बुलाएं कहां॥
जिन मुसाफिरोँ से मंजिल खुद मिलना नही चाहती।
उन मुसाफिरोँ को गलियां पहुंचाएं कहां॥
ये जमाना कुछ बताने बास्ते तैयार नही है।
आखिर हम लोग अपनी पहलियां सुलझाये कहां॥
समंदर ने जाल फैलाया है मछलियाँ जाये कहाँ।
फूल साजिशो मे है घर तितलियां बनाएं कहा॥
रचना: रोहित कुमार
फूल साजिशो मे है घर तितलियां बनाएं कहा॥
अपना आशिया तो कबका जल चुके है।
आसमां सोच मे है कि वो बिजलियां गिराएं कहां॥
शिकारी को पहरेदारी मिली है बाहर की।
प्यासे भंवरोँ को मिलने के लिए कलियां बुलाएं कहां॥
जिन मुसाफिरोँ से मंजिल खुद मिलना नही चाहती।
उन मुसाफिरोँ को गलियां पहुंचाएं कहां॥
ये जमाना कुछ बताने बास्ते तैयार नही है।
आखिर हम लोग अपनी पहलियां सुलझाये कहां॥
समंदर ने जाल फैलाया है मछलियाँ जाये कहाँ।
फूल साजिशो मे है घर तितलियां बनाएं कहा॥
रचना: रोहित कुमार