शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

मेरे अजब हालात





अजब हालात थे मेरे अजब दिन रात थे मरे,


अजब हालात थे मेरे अजब दिन रात थे मरे,
पर अफशोस नही था ये जो तुम साथ थे मेरे।
मेरे तरफ लोगो के नजरे ऐसी उठती थी,
कि लाखोँ उँगलीयाँ और हजारो हाथ थे मेरे,..!

मै एक पत्थर का बुत था उनके मंदिर मे,
 ना सिने मे दिल था ना कोई जजबात थे मेरे,
किसी से क्या उम्मिद रखता मै,
 लब्ज खामोश थे जो हालत थे मेरे
 सबको भुलाके याद रखा जिसको,
आखिर उसी ने कहा पिछे से बार किया मेरे,.....!

 मै जिस शोलो मेँ जलता था वो तुम नही समझे,
 मेरे दिल ही समझता था और समझते थे जजबात मेरे,
मुझे मुजरिम बनाके रख दिया झूठे गवाहो ने,
 आखिर सभी रद हो गये जितने भी इल्जेमात थे मेरे,...!
फिर भी लङखङाये नही मेरे कदम,क्योकि तुम साथ थे मेरे......!!

अजब हालात थे मेरे अजब दिन रात थे मरे,
पर अफशोस नही था ये जो तुम साथ थे मेरे।
॥ रोहित कुमार के कलम से