नदी किनारे ख्याव पङा था टूटा कूटा वेसूद वेकल,
लहरे आके उसको ताकती सांझ सवेरे पल पल,
सिपी चुनते चुनते न जाने उसको मै छु बैठा,
साँस हुआ क्या देखा रूह उसमे अभी तक जाग रही है,
हाथ मे मेरे उसकी सरारत धिरे धिर मुझको ताक रही है,
तब हाथ मे मैने उसको उठाया
,एक छोटी सी कश्ती के निचे रखा था थोङा सा साया,
फिर नर्म सी गीली रेत का मैने विस्तर एक विछाया,
एक दो बुंद पानी कि दी तब कुछ होश मे आया,
तब उखङे उखङे चेहरे ने,उसने ये बतलाया,
फेग गये उसको उसके सँगी साथी भाई,
सुनकर उसकी दुँखी कहानी देर तक मुझको साँस न आयी,
तब आखरी ख्वाहीश मुझको देकर ,नैनो मे अपनी चाहत को समोकर
हमेशा के लिए वो सोया ,अपने दुख को मुझमे बोया ॥ऽ॥
रचना : ==== रोहित कुमार ====
रचना : ==== रोहित कुमार ====