सोमवार, 11 अगस्त 2014

मेरे दादा जी


मेरे दादा जी उस उम्र के दौर से गुजर रहे हैं जहां चीजें अक्सर छूटने लगती हैं। अर्पिता (भांजी) ने उनके हाथों कि और हैरत से देखने लगे और अपने नन्हेँ नन्हेँ हाथो से दादा जी के हाथो को चुने लगे और बार बार अपने हाथो को देखने लगे,,‘इनके हाथों की नसें किस तरह चमक रही हैं।’ छोटी सी बच्ची गम्भीरता से दोनो हाथो को देख रही थी।उस छोटी बच्ची को भी एक वृद्ध की इस अवस्था को देखकर हैरानी हुई।

दरअसल बुढ़ापा अपने साथ संशय और हैरानी लाता है। इंसान खुद को ऐसे दौर में पाता हैं जहां से रुट बदलना नामुमकिन है। अब तो सिर्फ आगे जाना है। हां, पीछे मुड़कर देखा जा सकता है, लेकिन पुराने दिनों को जिया नहीं जा सकता। अर्पिता की इस अवस्था को देखकर मै गंभीर हो गया था। 

नसों ने त्वचा का दामन नहीं छोड़ा है। बस किसी तरह चिपकी हैं। 
हम जब एक वृद्ध को देखते हैं तो पाते हैं कि जर्जरता किस कदर हावी हो सकती है। शरीर कितना है बाकी। 

हम जानते हैं कि हम भी कभी वृद्ध होंगे। हम भी होंगे अपने वृद्धजनों के दौर में। तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?= रोहित कुमार