मै रोहित कूमार माँ के लिए एक साँल खरिदा ,
साँल कि पालिथिन हाथो मे लटकाते हुये हम जा रहे थे
शाम ढलने वाली थी और कुछ कुछ अंधेरा भी होने लगे थे
चुंकी ढंड का मैसम है तो अंधेरा भी जल्दी हो जाती है ।
हमे जल्दी घर पहूँचना था हम अपना कदम तेजी से बङाने लगे, आगे बहुत ट्राफिक था तो हम बस स्टैँड होते हुये चल दी, ताकि जल्दी पहूँच सके, अचानक मेरी नजर एक आदमी पर पङी जिनकी उम्र लगभग 80/85 साल के होंगे।
उनकी हालत देखकर मुझसे रहा नही गया और मै उनके पास गया,और देखा कि इस ठिठूरती ठंड मेँ पतले से एक कूर्ता और फटे पुराने एक जैकेट, ना सिर पे टोपी ना पैरो मेँ जुता फटे से एक जोङी चप्पल जोकि पता नही कब टूट जाय, उनकी जर्जर अवस्था थी ठंड से हाथ पैर काप रहे थे उनकी हालत देखकर हमे बहुत दुख हो रहा था मै उनके पास बैठा कि देखा, पास से एक चाय वाला चाय बेचते हुये जा रहे थे मैने 2 कप चाय लिया एक उनके हाथ मे दिया, ठंड के मारे उनके हाथ इतन जोरो से काप रहे थे कि सारी चाय वे अपने हाथो पे गिरा दिये,मैने अपने रुमाल से उनके हाथ पोछ दिये और अपनी वाली चाय उनको दे दिये।
अपने फटे कपङो से वे अपने शरीर को ढकने की कोशिश कर रहे थे पर इस ठिठूरती ठंड मे सुई कि तरह चुभती ये ठंडी हवा मानो उनके शरीर को छलनी कर रहे थे दाँतो से दाँत बजने लगे बङी मुश्किल से वे उस चाय को पि रहे थे तब मै मन ही मन सोचने लगा कि मै ये साँल माँ के लिए ले जा रहा हूँ पर माँ के पास तो और भी ऐसे साँल होँगे जिन्हे वे पहेनती होगी पर इनके पास तो ओढने के लिए कुछ भी नही है।
इससे पहले कि मन मे कुछ और उमढते मैने पालिथिन से साँल निकाली और उनको ओढा दिया,
फिर उन्होने मेरा नाम पूछा मैने कहा रोहित कूमार, मैने उनसे कहाँ आप चलो मेरे साथ मै आपको जूते खरिद दू काफी देर तक बोलने के बाद भी वे सिर्फ एक ही बात कहते रहे हमेँ नही चाहिए। मैने उनसे पूछा कि आपकी ये हालत क्योँ है? उन्होने कहा कि मै सबसे ज्यादा प्रेम जिनसे करता था वो है मेरी पत्नी, 1 शाल पहले बिमारी के कारण उसकी देहान्त हो गये, मेरे एक ही बेटे है जो रोज मुझे वृद्धआश्रम का रास्ता दिखाता है तो आज मै अपने घर से निकल आया, उनकी दर्द भरी कहानी सुनकर मै भावुक हो गया, उनको देखके ऐसा लगा उन्होने कुछ खाया भी ना होगा मैने उनसे कहा हम अभी आते है मै जाके पास के एक कैँटीन से उनके लिए खाना पैक करवाया और एक जोङी मोजे भी ले लिये , क्योकि उनके पैरो मे फटे चप्पल के अलावा कुछ नही था ,
मै वहा आके चौक पङा,
वे वहा नही थे बहूत ढूडा, कही नही मिले 1 घंटे तक इधर उधर ढूडता रहा कही ना थे वो मेरा मन बहुत अदास हो गया और अंधेरा भी पूरा हो चुका था फिर मै अपने घर की और चल दिये लेकिन बार-बार मै यही सोच रहा था की आज की पीढी कैसी निर्लज्ज है जो अपनी ईश्वर तुल्य पिता को भी सहारा नही दे सकते, लानत है ऐसी संतान पर, आपका प्रिय रोहित कूमार!
बुढ़ापा क्या आया के लाचार हो गये ,
माँ बाप रद्दी के अख़बार हो गये,
न पहले जेसी घर में वो हेसियत रही ,
अब तो घर के ही चोकीदार हो गये,
बुढ़ापा क्या आया के लाचार हो गये ,
न पास कोई बेठता न दवाई कोई जब से बीमार हो गये
हमे जल्दी घर पहूँचना था हम अपना कदम तेजी से बङाने लगे, आगे बहुत ट्राफिक था तो हम बस स्टैँड होते हुये चल दी, ताकि जल्दी पहूँच सके, अचानक मेरी नजर एक आदमी पर पङी जिनकी उम्र लगभग 80/85 साल के होंगे।
उनकी हालत देखकर मुझसे रहा नही गया और मै उनके पास गया,और देखा कि इस ठिठूरती ठंड मेँ पतले से एक कूर्ता और फटे पुराने एक जैकेट, ना सिर पे टोपी ना पैरो मेँ जुता फटे से एक जोङी चप्पल जोकि पता नही कब टूट जाय, उनकी जर्जर अवस्था थी ठंड से हाथ पैर काप रहे थे उनकी हालत देखकर हमे बहुत दुख हो रहा था मै उनके पास बैठा कि देखा, पास से एक चाय वाला चाय बेचते हुये जा रहे थे मैने 2 कप चाय लिया एक उनके हाथ मे दिया, ठंड के मारे उनके हाथ इतन जोरो से काप रहे थे कि सारी चाय वे अपने हाथो पे गिरा दिये,मैने अपने रुमाल से उनके हाथ पोछ दिये और अपनी वाली चाय उनको दे दिये।
अपने फटे कपङो से वे अपने शरीर को ढकने की कोशिश कर रहे थे पर इस ठिठूरती ठंड मे सुई कि तरह चुभती ये ठंडी हवा मानो उनके शरीर को छलनी कर रहे थे दाँतो से दाँत बजने लगे बङी मुश्किल से वे उस चाय को पि रहे थे तब मै मन ही मन सोचने लगा कि मै ये साँल माँ के लिए ले जा रहा हूँ पर माँ के पास तो और भी ऐसे साँल होँगे जिन्हे वे पहेनती होगी पर इनके पास तो ओढने के लिए कुछ भी नही है।
इससे पहले कि मन मे कुछ और उमढते मैने पालिथिन से साँल निकाली और उनको ओढा दिया,
फिर उन्होने मेरा नाम पूछा मैने कहा रोहित कूमार, मैने उनसे कहाँ आप चलो मेरे साथ मै आपको जूते खरिद दू काफी देर तक बोलने के बाद भी वे सिर्फ एक ही बात कहते रहे हमेँ नही चाहिए। मैने उनसे पूछा कि आपकी ये हालत क्योँ है? उन्होने कहा कि मै सबसे ज्यादा प्रेम जिनसे करता था वो है मेरी पत्नी, 1 शाल पहले बिमारी के कारण उसकी देहान्त हो गये, मेरे एक ही बेटे है जो रोज मुझे वृद्धआश्रम का रास्ता दिखाता है तो आज मै अपने घर से निकल आया, उनकी दर्द भरी कहानी सुनकर मै भावुक हो गया, उनको देखके ऐसा लगा उन्होने कुछ खाया भी ना होगा मैने उनसे कहा हम अभी आते है मै जाके पास के एक कैँटीन से उनके लिए खाना पैक करवाया और एक जोङी मोजे भी ले लिये , क्योकि उनके पैरो मे फटे चप्पल के अलावा कुछ नही था ,
मै वहा आके चौक पङा,
वे वहा नही थे बहूत ढूडा, कही नही मिले 1 घंटे तक इधर उधर ढूडता रहा कही ना थे वो मेरा मन बहुत अदास हो गया और अंधेरा भी पूरा हो चुका था फिर मै अपने घर की और चल दिये लेकिन बार-बार मै यही सोच रहा था की आज की पीढी कैसी निर्लज्ज है जो अपनी ईश्वर तुल्य पिता को भी सहारा नही दे सकते, लानत है ऐसी संतान पर, आपका प्रिय रोहित कूमार!
बुढ़ापा क्या आया के लाचार हो गये ,
माँ बाप रद्दी के अख़बार हो गये,
न पहले जेसी घर में वो हेसियत रही ,
अब तो घर के ही चोकीदार हो गये,
बुढ़ापा क्या आया के लाचार हो गये ,
न पास कोई बेठता न दवाई कोई जब से बीमार हो गये
पैसा था जो पास में बच्चो पेलगा दिया,
करके उनकी शादिया कर्ज़दार हो गये
बुढ़ापे में भी चैन के दो पल नही मिले,
बच्चे ये समझने लगे हम उन पे भार हो गये
न जाने कब कहाँ गिर पढ़े धढ़ाम से ,
क्या बताये आपको गिरती दिवार हो गये,
बुढ़ापा क्या आया के लाचार हो गये ,
उम्मीद थी सेवा करेंगे माँ बाप की ,
पर बच्चो के हम सेवादार हो गये
हाल ऐसा कर क्यों तूने ऐ जिंदगी,
सपने सारे जिंदगी के तार तार हो गये
बुढ़ापा क्या आया के लाचार हो गये , -रोहित कुमार
बुढ़ापे में भी चैन के दो पल नही मिले,
बच्चे ये समझने लगे हम उन पे भार हो गये
न जाने कब कहाँ गिर पढ़े धढ़ाम से ,
क्या बताये आपको गिरती दिवार हो गये,
बुढ़ापा क्या आया के लाचार हो गये ,
उम्मीद थी सेवा करेंगे माँ बाप की ,
पर बच्चो के हम सेवादार हो गये
हाल ऐसा कर क्यों तूने ऐ जिंदगी,
सपने सारे जिंदगी के तार तार हो गये
बुढ़ापा क्या आया के लाचार हो गये , -रोहित कुमार